OLD HATS NEW FACES
Reunions are such great occasions
Remember the movie Pyaasa?
Guru Dutt sees Mala Sinha entering the class और एक शेर कह देते हैं
"जब हम चलें तो साया भी अपना ना साथ दे
जब तुम चलो तो ज़मीन चले आसमान चले
जब हम रुकें तो साथ रुके शामें बेकसि
जब तुम रुको तो बहार रुके चाँद रुके"
Years later, it is the college reunion
वही शायर है अन्दाज़ बदल गया
"तंग आ चुके हैं कश्मकशे ज़िंदगी से हम
ठुकरा ना दे जहाँ को कहीं बेदिली से हम
उभरेंगे एक बार अभी दिल के वलवले
माना कि दब गए हैं गमे ज़िंदगी से हम"
कोई नहि पूछता तुम कहाँ थे कहाँ रहे साहिब
एक दूसरी फ़िल्म पर चलते हैं
Dharmendra की सबसे बहतरीं film Satyakaam
क्लास बस में पिकनिक पर जा रही है
"आदमी है क्या, आदमी है बंदर
रोटी उठा के भागे कपड़े चुरा के भागें
कहलाय वो Sikander!
बन्दर नहीं है ,आदमी का क्या कहना
प्यार मोहब्बत फ़ितरत उसकी
दोस्ती मझहब उसका"
सालों बाद यार से reunion
वही अन्दाज़. कुछ नहीं बदला, यार बदल गया
"समझ नहीं आता की मैं बदल गया या यह दुनिया बदल गयी
आज कल ऐसा लगता है जैसे बुरायी मैं हम एक दूसरे का मुक़ाबला कर रहें हैं
हमने अपने फ़ायदे के लिए नैतिकता से सुलह कर ली, पर मैं नहीं करूँगा!"
कुछ ऐसी ही एक बस मैं, ऐसी ही एक पिकनिक पर हम भी गए थे पाण्डु पोल
वहाँ एक सहपाठी ने मिर्ज़ा ग़ालिब की एक ग़ज़ल गायी
और क्या गायी, जैसे स्वयं Suraiya गा रही हो
पर हम भी हद तक Talat के दीवाने हैं
Talat के अंतरे फ़र्क़ सप्तक में गाए सो अखर गया
कुछ कहने की हिम्मत ना जुटा पाए क्योंकि
लड़कियों से बात करना किसी ज़ुल्म से कम ना था
क्लास मैं लड़कियाँ एक तरफ़ बैठती थी लड़के दूसरी तरफ़
47 साल बाद batchmeet हुई पर नज़ारा वही, तल्खियाँ बनी हुई
College के दिनों में बहुत ख़राब लगता था सहपाठी को Doc saheb या जिगरी कह कर बुलाना
एक common noun सा
हम तो अपने pet को भी नाम दे देते हैं , भले ही Tommy ही सही
47 साल बाद समझ मैं आया
जब चहरा और शख़्सियत पहचान मैं ना आए तो यही सही है
फिर महसूस होता है की नाम से ही बुलाते होते तो यह नौबत ना आती
ख़ैर जाने भी दो यारों
इस Whatsapp ने भी ख़ूब कारामात करी है
जिन्हें साहित्य से, कविता, शेर और शायरी से कोई लगाव ना था और
नफ़रत की हद तक परहेज़ था
इस cut copy paste की कल्चर की बदौलत वाह वाही बटोर रहें हैं
ना दिल है ना जज़्बात हैं, बस यूँ ही सरे राह चलते चलते
हम क्यूँ गिला करें
कुछ दिल की बात थी कुछ जज़्बात थे सो उगल दिए
बकोल ग़ालिब
बके जा रहा हूँ जुनून मैं क्या कुछ मैं
कुछ ना समझे खुदा करे कोई
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